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आज का विचार - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आचार्य विद्यासागर जी के स्वर्णिम संस्मरण
समता
पैर में तकलीफ बढ़ती ही जा रही थी, आचार्य महाराज कक्ष में आये और मुझसे पूछने लगे - क्यों महाराज कैसी है तकलीफ? मैंने कहा - बढ़ती ही जा रही है। आचार्य श्री बोले - इस रोग में कोई औषधि तो काम करती ही नहीं है, समता ही रखनी होगी। मूलाचार में साधु को सबसे बड़ी औषधि बताई है बताओ वह क्या है ? मैंने कहा - जी आचार्य श्री समता खुश होकर आचार्य श्री बोले - बहुत अच्छा ऐसी ही समता बनाए रखना। मैंने कहा - आपका आशीर्वाद रहा तो सब सहन हो जावेगा, आप आ जाते हैं तो साहस बढ़ जाता है। आचार्य श्री कहते हैं भैया और मैं क्
दहेज का केंसर
एक दिन आचार्य श्री जी ने श्रावकों को दहेज जैसी कुरुतियों को दूर करने का उपदेश देते हुए कहा कि- कन्या पक्ष वाले भी मजबूती से रहें क्योंकि आज लड़के वाले दहेज लेकर एक, दो, तीन कहकर बोली की तरह लड़की को छोड़ देते है। दहेज लेने के बाद भी लोग कहते हैं और लाओ और लाओ नहीं तो घर नहीं आओ। अब यह व्यवसाय हो गया है पर जैन समाज को कम कर देना चाहिए। विवाह के साथ दाम्पत्य जीवन का अर्थ है दोनों एक हो जाना वह दो नहीं रहे एक हो गये हैं। बंध जैसा हो जावें इस प्रकार से सम्बंध होता है। ऊपर से नहीं/ऊपर से पल्ले की गां
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विचार सूत्र संकलन
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रोग
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संगति
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संकल्प-विकल्प
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अणुव्रत
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अंतर्दूष्टि
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ऊर्ध्वगमन
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कार्य
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उपगूहन अंग
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अध्यात्म
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आचार्य विद्यासागर जी की राष्ट्रीय देशना
आदर्श पत्र से शिक्षा लें
एक लेख पढ़ा था, वह लेख एक बहुत बड़े उद्योगपति का था। उनके पास अपार संपति थी उन्होंने अपने बच्चों के लिए एक पत्र लिखा था संभवत: आप लोगों को याद हो, मुझे याद आ रहा है। उन्होंने लिखा था-प्यारे बच्चो! आप लोग बहुत संपदा के बीच में आए हो। संपदा जो भी संगृहीत हुई है यह आपकी नहीं है। इसके असली उपभोक्ता आप नहीं हैं। यह श्रम की एक मात्र प्रस्तुति है, श्रम की फलश्रुति है। इसके उपभोक्ता जन-जन हैं। आप लोग तो इसकी एक कड़ी मात्र हैं। इसलिए इस संपदा पर अभिमान करना आप लोगों की मूर्खता होगी। यह पत्र उ
मैं राष्ट्र को पंगु देखना नहीं चाहता
आज आदमी के लिए पशुओं की बलि चढ़ाई जा रही है।आदमी के लिए पशुओं का कत्ल हो रहा है, देश की उन्नति के लिए पशुओं का वध हो रहा है। खून-मांस बेचकर देश की उन्नति का स्वप्न देखना, देश की बर्बादी का लक्षण है। आदमी के पास भुजाएँ हैं फिर उन भुजाओं का सही दिशा में पुरुषार्थ क्यों नहीं किया जा रहा है? आज भुजाओं से भी पैर का काम लिया जा रहा है। भला है कि आदमी के पास सींग नहीं है अन्यथा यह आदमी क्या-क्या करता पता नहीं। दूसरों के पैर तोड़कर हम अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते, मैं राष्ट्र को पंगू देखना नहीं चाहता
मूक पशुओं की आवाज राष्ट्रपति भवन पहुँचाओ
देश के राष्ट्रपति को देश की पशु सम्पदा का ध्यान होना चाहिए लेकिन आज नहीं है इसलिए नागरिकों अब जागो और मूक पशुओं की आवाज को राष्ट्रपति भवन तक पहुँचाओ ताकि वह भवन पशुओं की पुकार से हिल उठे और पशुओं का कत्ल होना बन्द हो जाए मांस नियति रुक जाए। वस्तुत: आज हमको जागृत होने की जरुरत है। यह हमारा देश युगों-युगों से सत्य अहिंसा का सन्देश देता आ रहा है हम अपने इतिहास को खोलें, अपनी संस्कृति को पहिचानें उसका अध्ययन करें। भारतीय इतिहास, संस्कृति और सभ्यता पशुवध की इजाजत नहीं दे सकती 'वध' तो 'वध'
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आचार्य विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम
पाठ ९ जिनमार्ग पोषक
गुरु वह आध्यात्मिक शिल्पकार हैं, जो शिष्य को दीक्षा के साँचे में ढालकर न केवल एक मूर्ति का रूप देते हैं, बल्कि निर्वाण प्राप्ति के लिए आवश्यक संस्कारों के रंग-रोगन से भरकर उसके जीवन को श्रेष्ठ बनाते हुए उस पर अनुग्रह करते हैं। गुरु के द्वारा शिष्य में पोषित किए जाने वाले ऐसे ही अनमोल संस्कारों एवं शिक्षाओं से जुड़े कुछ प्रसंगों को इस पाठ का विषय बनाया जा रहा है। आचार्यश्रीजी उच्चकोटी के साधक होने के साथ-साथ श्रमण परंपरा को संप्रवाहित करने के लिए शिष्यों को संग्रहित एवं अनुग्रहित करने व
पाठ १० जैसे के जैसे
कहते हैं कि कार्य के आरंभिक समय में उत्साह एवं विशुद्धि का होना इतना महत्त्वशाली नहीं, जितना कि कार्य की पूर्णतापर्यंत उसका अनवरत बना रहना। इसी तरह दीक्षा के समय वैराग्य, उत्साह एवं विशुद्धि का होना तो स्वाभाविक है। महत्त्व तो तब है, जब समाधिमरण पर्यंत तक वह अनवरत बनी रहे।आचार्य भगवन् श्री विद्यासागरजी मोक्षमार्ग के एक ऐसे महत्त्वशाली व्यक्तित्व हैं, जिनकी विशुद्धि, उत्साह, चेतना एवं आध्यात्मिकता दीक्षा के समय जैसी थी, आज ५० वर्ष पश्चात् भी वैसी की वैसी ही है। वह तब से अब तक 'जैसे के जैसे हैं। ग
पाठ ७ उत्तम दस धर्मधारी
आचार्य भगवन् कहते हैं- 'आत्मा के स्वभाव की उपलब्धि रत्नत्रय में निष्ठा के बिना नहीं होती और रत्नत्रय में निष्ठा दया धर्म के माध्यम से, क्षमादिधर्मों से ही मानी जाती है।' मूल गुणों में पठित दस धर्मों का आचार्यश्रीजी पूर्ण निष्ठा एवं उत्कृष्टता से किस तरह परिपालन करते हैं, इससे जुड़े हुए कुछ प्रसंगों को यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है। श्रमणत्व अंगरक्षक : दस धर्म * अर्हत्वाणी * धम्मो वत्थु-सहावो ... .... जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ ४७८॥ वस्तु के स्वभ
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आचार्य विद्यासागर जी द्वारा ग्रन्थ पद्यानुवाद
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971)
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971) ‘कल्याणमंदिर स्तोत्र' आचार्य कुमुदचन्द्र, अपरनाम श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा विरचित है। इसका पद्यानुवाद आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मदनगंज-किशनगढ़, अजमेर (राज.) में सन् १९७१ के वर्षायोग में किया। इस स्तोत्र को पार्श्वनाथ स्तोत्र भी कहते हैं। मूल स्तोत्र एवं अनुवाद दोनों ही वसन्ततिलका छन्द में निबद्ध हैं। इस कृति में उन कल्याणनिधि, उदार, अघनाशक तथा विश्वसार जिन-पद-नीरज को नमन किया गया है जो संसारवारिधि से स्व-पर का सन्तरण करने के लिए
अंतर घटना
उपलब्ध जैन-दर्शन साहित्य में प्राकृत-भाषा-निष्ठ साहित्य का बाहुल्य है। कारण यही है कि यह भाषा सरल, मधुर एवं ज्ञेय है। इसीलिए कुन्दकुन्द की लेखनी ने प्राकृत-भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना कर डाली। उन अनेक सारभूत ग्रंथों में अध्यात्म-शान्तरस से आप्लावित ग्रंथराज 'समयसार' है। इसमें सहज-शुद्ध तल की निरूपणा, अपनी चरम सीमा पर सोल्लास 'नृत्य करती हुई. पाठक को, जो साधक एवं अध्यात्म से रुचि रखता है, बुलाती हुई सी प्रतीत होती है। यथार्थ में, कुन्दकुन्द ने अपनी अनुभूतियों को 'समयसार' इस ग्रंथ के रूप में रूप
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी ज्ञानावरणादिक कर्मों से, पूर्णरूप से मुक्त रहे। केवल संवेदन आदिक से युक्त, रहे, ना मुक्त रहे ॥ ज्ञानमूर्ति हैं परमातम हैं, अक्षय सुख के धाम बने। मन वच तन से नमन उन्हें हो, विमल बने ये परिणाम घने ॥१॥ बाह्यज्ञान से ग्राह्य रहा पर, जड़ का ग्राहक रहा नहीं। हेतु-फलों को क्रमशः धारे, आतम तो उपयोग धनी॥ ध्रौव्य आय औ व्यय वाला है, आदि मध्य औ अन्त बिना। परिचय अब तो अपना कर लो, कहते हमको सन्त जना ॥२॥ प्रमेयतादिक गुणधर्
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आचार्य विद्यासागर जी के लिखित प्रवचन
कुण्डलपुर देशना 5 - कर्त्तव्य से कर्त्तव्य पथ श्रेष्ट
अहिंसा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है जैनदर्शन में ज्ञान और दर्शन को अहिंसा के कारण ही धर्म की संज्ञा प्राप्त है। अहिंसा से ही ज्ञान समीचीन माना जाता है। उसकी स्वीकारता से ही रत्नत्रय की प्राप्ति होती है और इस नश्वर शरीर के माध्यम से वह अविनश्वर दशा प्राप्त की जाती है। जीवन में एक ओर पुरुषार्थ होता है तो दूसरी ओर भाग्य। बुद्धि पूर्वक किया गया पुरुषार्थ नहीं तथा शरीर को छोड़कर चले जाना मात्र ही मृत्यु नहीं है। संयोग-वियोग से ऊपर उठकर सोचने से ही जीवन का यथार्थ बोध हो सकता है, संयोग होने पर हर्ष तथा वि
कुण्डलपुर देशना 8 - अनंतकालीन संतति
आत्मिक संस्कारों के सामने वैषयिक संस्कार बलजोर नहीं हो पाते, अपितु बलहीन हो जाते हैं। विषय कषायों के संस्कार तो अनंतकालीन हैं जो अज्ञान के कारण सदा बलजोर रहे, पर जो व्यक्ति तत्वज्ञान को प्राप्त कर लेता उसके बुरे संस्कार समाप्त होना प्रारंभ हो जाते हैं। उसमें ऐसी भी शक्ति विद्यमान है जिससे अत्यल्प समय में भी उन्हें धोया जा सकता है। संसारी प्राणी तो पंचेन्द्रिय विषयों के प्रति राग के आकर्षण से खिंचता चला जाता किन्तु जिसके पास तत्व ज्ञान होता, वह उन विषयों के बीच में रहते हुए उनसे निर्लिप्त अप्रभाव
कुण्डलपुर देशना 9 - एक जन्म ऐसा भी हो
आज हमारे चारों ओर अंधकार ही अंधकार है, उजाले का ठिकाना नहीं है। सूर्य और चंद्रमा के कारण दिन एवं रात का विभाजन तो हो जाता है किन्तु मोह के कारण दिन में भी रात होती है। मोह का अभाव हो जाने पर रात्रि में भी दिन जैसा ही प्रकाश भासित होता है। विषयों के प्रति लगाव को सम्यग्ज्ञान के द्वारा ही शांत किया जा सकता अन्यथा नहीं। यह सावधानी रखना आवश्यक है कि आज का संयोग कल नियम से वियोग में परिणित होगा ही । इस सत्य से हम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और अपने समय को प्रभु की भक्ति में/अपने आत्म कल्याण में लगा सक
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काव्य रचनाएँ
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पवित्र मानव जीवन / कर्तव्य पथ प्रदर्शन
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जिनेन्द्र देव की वाणी , जिसे पूर्वाचार्यो ने प्राकृत संस्कृत भाषा में निबद्ध किया था, उसी का आचार्य विद्यासागर जी द्वारा हिंदी भाषा में अनुदित पद्यानुवादजैन गीता (समणसुत्तं) कुन्दकुन्द का कुन्दन (समयसार) -
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दिनांक :- २६ फरवरी २०२४
परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य पूज्य निर्यापक श्रमण ज्येष्ठ श्रेष्ठ मुनि श्री समय सागर जी महाराज ससंघ डोंगरगढ़ में विराजमान है ।
उनके अलावा लगभग सभी निर्यापक संघ एवं पूज्य मुनि संघ का मंगल विहार चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से डोंगरगढ़ सिटी की ओर हुआ।आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
संभावित मुनि संघ एवं विहार दिशा
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ योगसागरजी महाराज
★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ समतासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ पूज्यसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ महासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निष्कंपसागर जी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निस्सीमसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ निश्चय सागरजी महाराज
★ऐलकश्री १०५ धैर्य सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- राजेन्द्र नगर/ अमरकंटक की ओर
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ प्रसादसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ अजितसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ चंद्रप्रभसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निरामयसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ विवेकानंद सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- बालाघाट की ओरसूचना इसी लिंक पर अपडेट की जाएगी
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जन्म का उत्सव तो सभी मानते हैं, किंतु जो मरण का उत्सव मनाते हैं वह मौत को भी जीत जाते है। जैन परम्परा में मरण को जीतने की इसी कला को समाधिमरण कहते है।
छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी डोगरगढ़ चंद्रगिरी दिगंबर तीर्थक्षेत्र पर समाधि साधनारत दिगंबर जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज ने दिनांक 18 फरवरी 2024 के ब्रम्हमुहूर्त में जीवन की इसी श्रेष्ठतम समाधि अवस्था को प्राप्त किया। मानों एक क्षण के लिए समय का चक्र थम गया। भाजपा के केंद्रीय अधिवेशन दिल्ली में आज कार्यवाही प्रारंभ होने के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जेपी नड्डा जी ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, आदि उपस्थित सभी विशिष्ट महानुभावों को यह दुखद सूचना देकर गुरुदेव के प्रति मौन श्रद्धांजलि अर्पित कराई। इस अवसर पर देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र जी मोदी ने कहा की समाधि की सूचना मिलने के बाद उनके भक्त और हम सभी शोक में है और हम सब भी शोक में हैं और मेरे लिए तो यह व्यक्ति गत बहुत बड़ी क्षति है। इस समय वह गुरुदेव अपना अपना छोटा सा संघ लिए आत्मा साधना में लिए लीन रहते थे। जबकि उनके द्वारा दीक्षित हजारों शिष्य, शिष्याएं समूचे देश विहार कर रहे है। समाचार फैलते ही समूचे देश के श्रद्धालुओं, भक्तों की भीड़ गुरुदेव के अंतिम दर्शन करने उमड़ पड़ी। मध्यान्ह काल 1 बजे गुरुदेव की विमान यात्रा प्रारंभ होते ही लाखों नयन अश्रुपूरित हो उठे।मुख्य मंत्री मोहन यादव के निर्देशन से आए चेतन कश्यप :केबिनेट मंत्री सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने किए अंतिम दर्शन
"जैनम जयति शासनम, वंदे विद्यासागरम" के उद्घोषों के साथ ही मुनिसंघ के साथ विमान यात्रा अंतिम संस्कारस्थली पर पहुंची। मुनीसंघ के द्वारा किए गए अंतिम धार्मिक अनुष्ठान, भक्तिपाठ संपन्न होते ही प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी विनय भैया जी द्वारा दाह संस्कार की विधि संपन्न की गई। देश के प्रसिद्ध श्रावक श्रेष्ठि श्रीमान अशोक जी पाटनी(R.K.मार्बल) किशनगढ़, प्रभात जी मुंबई, राजा भैया सूरत, अतुल सराफ पूना, विनोद बड़जात्या रायपुर, प्रमोद कोयला दिल्ली, पंकज जी पारस चैनल दिल्ली, दिलीप घेवारे ठाणे, किरीट भाई मुंबई, चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी से किशोर जी जैन, चंद्रकांत जैन, सुधीर जैन छुईखदान आदि सभी ट्रष्टिगण उपस्थित थे।हम सबके प्राणदाता, जीवन निर्माता गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण कर ली थी और जागरूक अवस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुवे 3 दिन का निर्जल उपवास करते हुवे प्रत्याख्यान किया था। अखंड मौन धारण करके उन्होंने अपनी यह समाधि साधना संपन्न की।
इस अवसर पर प्रतिभामंडल की समस्त ब्रह्मचारिणी बहने चंद्रगिरी क्षेत्र रामटेक, तिलवारा जबलपुर, ललितपुर एवम इंदौर की विशेष उपस्तिथि के साथ विभिन्न प्रदेशों से भी श्रद्धालुजन आए। ब्रम्हचारी भैया, ब्रम्हचारी बहनें, समस्त गौशलाओ के कार्यकर्तगण, पुर्नायु, शांतिधारा, हथकरघा, भाग्योदय के कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे। ब्राम्ही विद्या आश्रम की बहने, श्राधिका आश्रम, उदासीन आश्रम इंदौर की बहने, ब्रम्हचारी समस्त ब्रम्हचारी भैया आदि इस अवसर पर विशेष रूप से विभिन्न प्रदेशों की समाज एवम कार्यकर्ता के संगठन उपस्थित रहे। गुरुदेव के संघ जहां जहां विराजमान थे आर्यिका संघ जहां जहां विराजमान थे, के द्वारा गुरुदेव के श्रीचरणों में अपनी विनयांजलि अर्पण की।
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"सब के सब बहुत ही उपयोगी है । ये वेबसाइट पर सभी को एकत्रित होना चाहिए । ताकि सभी लोगो को फायदा होगा । कार्यक्रम और कार्य कर्ताओं को बधाई ।The daily updates are really fast and informative. Please keep updating. Thanks a lot for creating and maintaining this website.मुझे यह ,साइट बहुत पसंद आई यह बहुत उपयोगी साइट है धन्यवादGreat workविगत 5 दिनों से पूज्य श्री की स्नेहिल छाँव में था. अपने गृह नगर में, उनकी मृदुल मुस्कान, पावन कर से तृप्ति दायी आशीष, उनसे वार्ता का सौभाग्य व उनके पाद पंकज के प्रक्षालन का परम सुख साथ ही उनको पड्गहन का सौभाग्य इनता सब हुआ विगत दिनों में. अहार चर्या के समय उनका मृदु मुस्कान से निहारना ऎसा लगता है कि बस उनके पाद पंकज, अपने चौके के सामने बनी रंगोली को पावन कर देंगे, पर पलक झपकते ही वे आगे दिखाई देते हैं. हम अनुमान लगाते रह जाते हैं, शायद आज संकल्प कुछ और ही होगा. …आपका यह सराहनीय कार्य जैन धर्म के लिए अतुलनीय योगदान है 🙏नीरज जैन 🙏बहुत अच्छा है भगवान को जाने के लिए कुंडलपुर के बड़े बाबा की जय ।।।।।जयजिनेन्द्र । सम्यक दर्शन । हरेक शब्द । नही ।नही । हरेक अक्षर उत्तम है । जीने का सारा है। आत्मा की पुकार है । यह कार्यक्रम संयम स्वर्ण महोत्सव के बाद भी जारी करें। आप सभी कार्यकर्ताओं को मेरा नमस्कार ।Many thanks for sharing this useful information. Its an eye opener for all modern Jain's who don't seem to be interested to know their rich past and are forgetting their Jain religion and it's contribution to the world. Please keep updating this app.इसमे सभी ज्ञानवर्द्धक उल्लेखों का वर्णन बहुत ही सरलता से समझ जाते है। ज्ञान वर्धन का बहुत ही अच्छा ,सरल साधन है।स्वाध्याय के साथ क्विज तो सोने पे सुहागा है।इससे हमें यह भी समझ आता है कि हम कितने गहन अध्ययन में है और कितना करना चाहिए ताकि स्वाध्याय में निपूर्ण हो । हमारा सौभाग्य है जो संत शिरोमणि का सानिध्य मिला। जय -जय गुरुदेव।🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼Is website k dwara muje ye tatwarath sutra ka Jo adhyan krne ko Mila vo adbhut hai me apne aap ko Bhot dhyan manti hu aur ye website hai har hamesha kuch naya swadhya krne ko mile aise asha rakhti hu.. Bhot Dhanyavadजय जिनेंद्र 🙏 नमोस्तु शासन जयवंत हो 🤗 इस एप से हमारे जैन धर्म की बहुत प्रभावना हो रही हैज्ञान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । जय जिनेन्द्र ??ऐसी सुंदर वेब साईट के लिए साधुवाद.प्रतिभास्थली के बारे में जानकारी एवम प्रचार अधिक हो ये आचार्य श्री जी भाव को आप के माध्यम से सभी तक पहुंचा सकते है सप्रेम जैन संयुक्त मंत्री प्रतिभास्थली चन्द्रगिरी डोंगरगढ़बहुत ही बढ़िया साइट बनायी है इस साइट के माध्यम से मुझे बहुत ही ज्ञान की प्राप्ति हुयी मैनें दूसरों को भी ज्ञान के बारे में बताया सौरव भाई का बहुत बहुत धन्यवाद साइट बनाने के लिये गुरूदेव की पूरी जानकारी मिलती हैजय जिनेन्द्र! घर बैठे ही तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ जिसे जैन गीता भी कहते हैं का स्वाध्याय करने का अवसर मिल रहा है। इसमें चारों अनुयोगो का ज्ञान है। पिछले चातुर्मास में माता जी से कक्षा ली थी अब पुनरावृति हो जाएगी। इस सराहनीय कार्य के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। जय जय गुरुदेव!This is very gudMe yah janana chata hu ki marte hue tote ko namokar mantra kisne sunaya -
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संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज
ये ऐसे संत है जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है जिनके विचारों में प्राणी मात्र का कल्याण आकर लेता है,जिनकी देशना में जगत अपने सदविकास का मार्ग प्रशस्त करता है |आप निरीह, निस्पृह वीतरागी है फिर भी आपके विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से ओतप्रोत है आपका चिंतन प्राचीन भारतीय हितचिंतको दार्शनिको एवं संतो का अनुकरण करते हुए भी मौलिक है |आचार्य महाराज तो ज्ञानवारिधी है और उनके विचारों को संकलित करना छोटी सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास करना है|
रास्ता उनका, सहारा उनका, मैं चल रहा हूँ दीपक उनका, रौशनी उनकी मैं जल रहा हूँ प्राण उनके हर श्वास उनकी मैं जी रहा हूँ
From Wikipedia Acharya Shri Vidyasagarji Maharaj (born 10 October 1946) is one of the best known modern Digambara Jain Acharya(philosopher monk). He is known both for his scholarship and tapasya (austerity). He is known for his long hours in meditation. While he was born in Karnataka and took diksha in Rajasthan, he generally spends much of his time in the Bundelkhand region where he is credited with having caused a revival in educational and religious activities. Know more about him
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